सोमवार का भगवान शिव

सोमवार का भगवान शिव से विशेष महत्व रखता है, और इसके पीछे एक अद्भुत कारण है। शिवजी के माथे पर सजा चंद्रमा, जिसे ‘सोम’ कहा जाता है, इस दिन को उनके लिए और भी खास बना देता है। चंद्रमा को धारण करने के कारण ही उन्हें ‘शशि शेखर’ की उपाधि प्राप्त हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘चंद्रमा का शिखर।’ आइये इस लेख में आगे जानते हैं की उन्होंने ही चन्द्रमा को अपने माथे पर विराजमान क्यों किया

चंद्रमा और शिव, अहंकार का परित्याग

सोमवार का भगवान शिव

एक बार चंद्रमा, जिन्हें राहु के आतंक से पीड़ित होने का सामना करना पड़ रहा था, ने शिवजी की शरण में आकर अपनी रक्षा की गुहार लगाई। चंद्रमा ने कहा कि पूर्णमासी और दोज के दौरान उन पर ग्रहण लग जाता है, और इससे उनकी कांति में कमी आती है। इस पर भगवान शिव ने उनके अहंकार की ओर इशारा किया और कहा कि उनकी यह धारणा कि वे पूर्ण हैं और चमक रहे हैं, उनके दुःख का कारण है। शिवजी ने चंद्रमा से कहा कि अगर वे अपने अहंकार को त्याग दें, तो राहु भी उन्हें छोड़ देगा।

भगवान शिव ने यह भी कहा कि वे अहंकारी की रक्षा नहीं करते, और उन्होंने चंद्रमा को वहां से जाने को कहा। चंद्रमा ने भगवान की बातों को मानते हुए अपने आप को लघु रूप में परिवर्तित कर लिया और वापस शिव के पास आए। इस बार उनका रूप बेहद विनम्र था। उनकी इस विनम्रता को देखकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर लिया। शिवजी ने घोषणा की कि अब कोई भी चंद्रमा को नहीं खा सकेगा, इस प्रकार चंद्रमा की रक्षा सुनिश्चित कर दी।

जिस क्षण चंद्रमा ने भगवान शंकर की शरण में प्रवेश किया, उनका स्थान न केवल हिंदू धर्म में बल्कि समस्त विश्व में पूज्य बन गया। हिंदू संस्कृति में चंद्रमा का महत्व इतना गहरा है कि करवा चौथ का व्रत चंद्रमा के दर्शन के बिना पूर्ण नहीं माना जाता। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए चंद्रमा को देखे बिना अपना व्रत नहीं तोड़तीं। इसी प्रकार, जन्माष्टमी का उत्सव भी चंद्रोदय के साथ ही सम्पन्न होता है, जिसमें श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है।

मुस्लिम समुदाय में भी चंद्रमा की महत्वपूर्ण भूमिका है। ईद का पर्व चंद्र दर्शन पर ही निर्भर करता है, जहाँ चाँद देखे जाने की पुष्टि के बाद ही ईद मनाई जाती है। इस प्रकार, चंद्रमा सभी के लिए एक विशेष आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व रखता है।

होड़ा चक्र के अनुसार दिनों का आरम्भ

सोमवार का भगवान शिव

ज्योतिष विद्या की शिक्षा में होड़ा चक्र का प्राथमिक स्थान है। यह वह चक्र है जिसके माध्यम से सृष्टि की गतिशीलता और समय के विभाजन को समझाया जाता है। जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई, उस समय से ही होड़ा चक्र का संचालन शुरू हो गया था। इस चक्र का एक पूर्ण रोटेशन 24 घंटे में होता है, और इसी के आधार पर ग्रहों का प्रभाव और समय की गणना की जाती है।

सूर्य, जो कि इस चक्र के पहले खंड के स्वामी हैं, ने रविवार को जन्म दिया। इसी तरह, दूसरे खंड के स्वामी चंद्रमा ने सोमवार को प्रभावित किया, और तीसरे खंड के स्वामी मंगल ने मंगलवार को। इस प्रकार, प्रत्येक ग्रह ने सप्ताह के दिनों को अपना-अपना रूप दिया, जिसे न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व ने स्वीकार किया।

होड़ा चक्र का यह अद्भुत विज्ञान हमें बताता है कि कैसे प्राचीन ज्योतिषी ने समय के साथ ग्रहों के प्रभाव को मापा और उनके आधार पर दिनों की गणना की। यह ज्ञान हमें न केवल खगोलीय घटनाओं की बेहतर समझ प्रदान करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने प्राकृतिक नियमों के साथ अपने जीवन को संगत किया। इस प्रकार, होड़ा चक्र ज्योतिष शास्त्र के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।

चंद्रमा से जुड़ी रोचक कथा

भारतीय पुराणों में अंकित एक अत्यंत रोचक कथा चंद्रमा से जुड़ी हुई है, जिसमें प्रेम, ईर्ष्या और दिव्य कृपा का सुंदर समावेश है। कहानी की शुरुआत होती है जब चंद्रमा को देवी दक्ष की कन्याओं के साथ विवाह करना पड़ा। इन कन्याओं में रोहिणी उन्हें सबसे प्रिय थीं, जिसकी वजह से अन्य कन्याएं उपेक्षित महसूस करने लगीं।

इस बात से खिन्न होकर दक्ष ने चंद्रमा को एक गहरा शाप दे दिया, जिसके फलस्वरूप चंद्रमा धीरे-धीरे अपनी चमक खोने लगे और क्षीण होने लगे। इस दुर्दशा से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने भगवान शंकर की शरण ली। भगवान शंकर, जिन्हें दया और करुणा का सागर माना जाता है, ने चंद्रमा को अपने माथे पर एक स्थान दिया। इससे चंद्रमा की क्षीणता रुक गई और उन्हें एक नई जीवनी शक्ति मिली।

चंद्रमा और भगवान शिव से संबंधित प्रश्नोत्तरी

प्रश्न: भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा किस रूप में विराजमान होता है?
उत्तर: भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा अर्धचंद्र के रूप में विराजमान होता है।

प्रश्न: शिव और चंद्रमा के संबंध को क्या कहा जाता है?
उत्तर: शिव को चंद्रशेखर या सोमनाथ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है जिनके सिर पर चंद्रमा है।

प्रश्न: भगवान शिव ने चंद्रमा को किस कारण अपने सिर पर धारण किया?
उत्तर: चंद्रमा को दक्ष प्रजापति के श्राप से बचाने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपने सिर पर धारण किया।

प्रश्न: शिव पुराण के अनुसार, शिव जी के सिर पर चंद्रमा होने का क्या प्रतीक है?
उत्तर: यह समय के निरंतर प्रवाह और कालचक्र के नियंत्रण का प्रतीक है।

प्रश्न: चंद्रमा को शिव के सिर पर धारण करने का पर्व कौन सा है?
उत्तर: महा शिवरात्रि का पर्व इस घटना को दर्शाता है।

प्रश्न: चंद्रमा और शिव का संयोजन क्या दर्शाता है?
उत्तर: यह नवीनीकरण और शांति का प्रतीक है।

प्रश्न: शिव के सिर पर चंद्रमा होने के कारण उन्हें क्या अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर: उन्हें चंद्रशेखर आजापति कहा जाता है।

प्रश्न: चंद्रमा के अष्टमी के दिन शिव पूजा का क्या महत्व है?
उत्तर: अष्टमी के दिन शिव पूजा से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

प्रश्न: शिव और चंद्रमा के मिथक में राहु का क्या योगदान है?
उत्तर: राहु चंद्रग्रहण का कारण बनता है, जिसमें शिव का आशीर्वाद माना जाता है।

प्रश्न: शिवलिंग पर चंद्रमा को किस प्रकार सजाया जाता है?
उत्तर: शिवलिंग पर चंद्रमा को बेल पत्र और जलाभिषेक के साथ सजाया जाता है।

प्रश्न: शिव और चंद्रमा के संबंध में ‘सोमनाथ’ नाम का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘सोमनाथ’ का अर्थ है ‘चंद्रमा का स्वामी’, जो शिव के नामों में से एक है।

प्रश्न: शिवरात्रि के दिन चंद्रमा की पूजा का क्या महत्व है?
उत्तर: शिवरात्रि के दिन चंद्रमा की पूजा से व्यक्ति को शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

प्रश्न: चंद्रमा के साथ शिव का चित्रण कैसे शांति और संतुलन का प्रतीक है?
उत्तर: चंद्रमा शांति का प्रतीक है और शिव के साथ इसका संयोजन संतुलन और शांत चित्त को दर्शाता है।

प्रश्न: शिव पुराण में चंद्रमा और शिव की कथा का क्या आध्यात्मिक महत्व है?
उत्तर: इस कथा से व्यक्ति को यह सिखने को मिलता है कि आध्यात्मिक शक्तियां कैसे बाहरी प्रभावों को नियंत्रित कर सकती हैं।

प्रश्न: चंद्रमा और शिव के संयोजन से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: यह संयोजन हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानना चाहिए और अपने जीवन में उसे संतुलित रूप से उपयोग करना चाहिए।

 

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