मां काली और रक्त बीज राक्षस की कथा भारतीय पौराणिक गाथाओं में एक विशेष महत्व रखती है, जहां मां काली ने अपनी असीम शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए इस अजेय प्रतीत होने वाले राक्षस का संहार किया। रक्तबीज की कथा पौराणिक इतिहास में एक अद्भुत और रोमांचक प्रसंग है। यह दानव एक विशेष वरदान से सम्पन्न था, जिसके अनुसार यदि उसके रक्त की कोई भी बूँद पृथ्वी पर गिरती, तो उस बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होता जो उसी के समान बलवान और शक्तिशाली होता।
इस वजह से, जब भी योद्धाओं ने उसे तलवारों और शस्त्रों से मारने की चेष्टा की, तो उसके रक्त से और अधिक रक्तबीज जन्म ले लेते, जिससे उसे मारना लगभग असंभव हो जाता था। रक्तबीज असुरराज शुम्भ और निशुम्भ की सेनाओं का मुख्य सेनानायक था। इस असुरी शक्ति के साथ उनकी सेनाएँ माँ दुर्गा और उनकी दिव्य शक्तियों के विरुद्ध खड़ी थीं, जिससे युद्ध की विशालता और भी जटिल हो गई थी।
जब सभी देवी-देवता रक्तबीज नामक दैत्य के वध में असमर्थ रहे, तब अंततः माता पार्वती को माँ काली के विकराल रूप में प्रकट होना पड़ा। रक्तबीज का वरदान था कि उसके रक्त की हर बूँद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होता था, जिससे उसे हराना असंभव सा प्रतीत होता था।
युद्ध के मैदान में, माँ काली ने हर बार रक्तबीज को घायल किया, उतनी ही बार उससे और अधिक रक्तबीज उत्पन्न होते गए। इस समस्या का समाधान खोजते हुए, माँ काली ने निश्चय किया कि वे रक्तबीज के रक्त को ही समाप्त कर देंगी। इसके लिए उन्होंने सभी रक्तबीजों का खून पीना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे रक्तबीज का कोई निशान तक नहीं रहा।
हालांकि, इस क्रिया से मां काली में रक्तबीज की शक्तियाँ समा गईं और वे अत्यंत उग्र और अशांत हो उठीं। उन्होंने अपना रुद्र रूप धारण किया और बादल गरजने लगे। इस स्थिति में माँ काली को शांत करना एक बड़ी चुनौती बन गई, जिससे पूरा ब्रह्मांड थर्रा उठा।
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि माँ काली के विकराल रूप को नियंत्रित करने में सभी देवी-देवता असमर्थ रहे। उनकी असीम शक्ति और रौद्र रूप ने सभी को चिंतित कर दिया था। अंततः, इस स्थिति को संभालने के लिए भगवान शिव को स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा। भगवान शिव, माँ पार्वती के पति, जिन्हें माँ काली के रूप में उनकी शक्तियों की व्यापकता का पूरा ज्ञान था, ने युद्धभूमि में अपना अंतिम उपाय अपनाया।
उन्होंने माँ काली के पथ में लेटने का निर्णय लिया। जैसे ही माँ काली का पैर भगवान शिव के सीने पर पड़ा, वे अचानक रुक गईं। उनकी आंखों में स्थित उग्रता का वेग शांत हुआ। माँ काली को जब यह एहसास हुआ कि उन्होंने अनजाने में अपने पति को पैरों तले रौंद दिया है, तो वे लज्जित हो गईं और अपने रौद्र रूप को त्याग दिया। इस घटना के पश्चात, माँ काली खोह गुफा में चली गईं, जो विंध्याचल धाम में स्थित है।
यह गुफा तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व रखती है और यह विश्व का एकमात्र मंदिर है जहां माँ महाकाली खेचरी मुद्रा में विराजमान हैं। इस प्रकार, माँ काली की इस कथा ने न केवल उनकी शक्ति का परिचय दिया, बल्कि उनकी संवेदनशीलता और पति के प्रति समर्पण की भी झलक प्रस्तुत की।
मां काली और रक्तबीज राक्षस से संबंधित प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: मां काली किस देवी का उग्र रूप हैं?
उत्तर: मां काली, मां पार्वती का उग्र रूप हैं।
प्रश्न: रक्तबीज को कौन सा वरदान प्राप्त था?
उत्तर: रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की हर बूंद से उसकी एक प्रतिकृति उत्पन्न होगी।
प्रश्न: मां काली ने रक्तबीज का वध कैसे किया?
उत्तर: मां काली ने रक्तबीज के खून को पीना शुरू किया ताकि उसके रक्त से कोई नया रक्तबीज न बने।
प्रश्न: रक्तबीज का सामना करने के लिए मां काली को किस देवी ने प्रेरित किया?
उत्तर: मां दुर्गा ने मां काली को रक्तबीज से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न: रक्तबीज किनका सेनापति था?
उत्तर: रक्तबीज, दैत्यराज शुम्भ और निशुम्भ का मुख्य सेनापति था।
प्रश्न: मां काली के विराट स्वरूप की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर: मां काली के विराट स्वरूप में चार हाथ, खुले बाल, लाल जीभ, और उनके गले में मुंड माला होती है।
प्रश्न: मां काली की पूजा का क्या महत्व है?
उत्तर: मां काली की पूजा का महत्व अधर्म, बुराई और नकारात्मक शक्तियों के विनाश के लिए है।
प्रश्न: रक्तबीज का वध किस युद्ध में हुआ था?
उत्तर: रक्तबीज का वध देवी महात्म्य के युद्ध में हुआ था।
प्रश्न: मां काली ने रक्तबीज के रक्त को पीने के बाद क्या किया?
उत्तर: मां काली ने रक्तबीज के सभी अवतारों का रक्त पीने के बाद उनकी संख्या में वृद्धि को रोक दिया और उसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया।
प्रश्न: मां काली के लिए कौन से विशेष त्योहार मनाए जाते हैं?
उत्तर: मां काली के लिए मुख्य त्योहार काली पूजा और नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा आयोजित की जाती है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में।
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