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भगवान शिव और भस्म का रहस्य

भगवान शिव और भस्म

भगवान शिव और भस्म का रहस्य हमें सिखाता है कि भस्म भगवान शिव के अद्वितीय और गहरे सिद्धांतों का प्रतीक है। हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति में भगवान शंकर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शंकर) – ये तीन देवता क्रमशः सृष्टि, पालन और संहार के कार्यों को अंजाम देते हैं। जहां ब्रह्मा सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं और भगवान विष्णु इस संसार के पालनहार हैं, वहीं भगवान शंकर को संहार और अंत का देवता माना जाता है।

शंकर भगवान का अवतार, जिसे शिव के नाम से भी जाना जाता है, वे सभी शमशान भूमियों में विराजमान रहते हैं। यह उनके द्वारा संहार के कार्य को प्रतिबिंबित करता है, जो सृष्टि के चक्र का एक अनिवार्य भाग है। शंकर भगवान की उपस्थिति यह दर्शाती है कि हर जीवन का अंत निश्चित है, और यह अंत सत्य है जिसे कोई नहीं रोक सकता।

भगवान शंकर की इस भूमिका को समझना यह भी दर्शाता है कि जीवन और मृत्यु दोनों ही सृष्टि के अभिन्न अंग हैं। उनकी अराधना में जीवन के इस अटल सत्य को स्वीकार करने की भावना निहित है, और यही कारण है कि वे अनेक भक्तों के लिए आदर और भय का विषय भी हैं। उनकी पूजा और साधना हमें जीवन के अस्थायित्व को समझने और उसकी अनिवार्यता को स्वीकार करने का मार्ग दिखाती है।

भगवान शंकर द्वारा भस्म धारण करने का कार्य हमें यह बोध कराता है कि सब कुछ नश्वर है और अंततः सब कुछ भस्म में परिवर्तित हो जाएगा। इस प्रक्रिया के माध्यम से वे हमें सिखाते हैं कि जीवन के सारे आसक्तियों और मोह-माया से ऊपर उठना कितना आवश्यक है। भस्म को धारण करते हुए, वे हमें यह भी दर्शाते हैं कि हर प्राणी की अंतिम गति यही है और यही ब्रह्मांड का अटल सत्य है।

आदि शंकराचार्य के दार्शनिक विचारों में, “ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या” का सूत्र एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस विचार को समझने के लिए हमें ‘असत्य’ और ‘मिथ्या’ के बीच के अंतर को गहराई से जानना होगा। ‘असत्य’ वह है जो सर्वथा झूठ है, जैसे कि “खरगोश के सींग होना” – यह एक काल्पनिक उदाहरण है जिसका वास्तविकता में कोई अस्तित्व नहीं है।

वहीं ‘मिथ्या’ उस सत्य को कहा जाता है जो वास्तव में तो सत्य नहीं होता, लेकिन उसका एक अस्थायी और काल्पनिक अस्तित्व होता है। जैसे, दर्पण में दिखाई देने वाला प्रतिबिंब; यह वास्तविक तो नहीं है, लेकिन इसे पूर्णतया असत्य भी नहीं कह सकते क्योंकि यह हमें दिखाई देता है। इसी प्रकार, स्वप्न, जो हमें सोते समय अनुभव होते हैं, वे भी हमारे अनुभव का हिस्सा बनते हैं लेकिन जागृत अवस्था में उनका कोई वास्तविकता में अस्तित्व नहीं होता, इसलिए वे ‘मिथ्या’ हैं।

अब बात करें जगत की, तो जगत भी हमें दिखाई तो देता है, लेकिन शंकराचार्य के अनुसार यह अस्थायी है और इसकी सत्ता ‘मिथ्या’ है। यह जगत, जिसे हम अपनी आंखों से देखते हैं, अंततः ब्रह्म में ही विलीन हो जाता है, क्योंकि सच्चाई में केवल ब्रह्म ही स्थायी है। ब्रह्म के माया से संयोग के फलस्वरूप जो ईश्वर की उपाधि प्राप्त होती है, वह भी इसी मिथ्यात्व का एक भाग है।

भारतीय आध्यात्मिकता में साधुओं का अपने शरीर पर भस्म लगाना एक गहन प्रतीकात्मक क्रिया है। यह क्रिया उन्हें निरंतर इस बात की याद दिलाती है कि यह मानव शरीर नश्वर है और अंततः मृत्यु के बाद राख में परिवर्तित हो जाएगा। साधुओं का यह व्यवहार हमें सिखाता है कि जीवन की सच्चाई केवल ब्रह्म में निहित है, जो एकमात्र अविनाशी सत्य है।

 

भगवान शिव और भस्म से संबंधित प्रश्नोत्तरी

प्रश्न: भगवान शिव भस्म का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर: भगवान शिव भस्म का उपयोग संसार की नश्वरता का प्रतीक के रूप में करते हैं और यह दिखाता है कि मृत्यु से अमरता की ओर जाने का मार्ग है।

प्रश्न: भस्म को धारण करने का क्या आध्यात्मिक महत्व है?
उत्तर: भस्म धारण करने से शिव भक्तों को सांसारिक मोह-माया से मुक्ति और जीवन के अंतिम सत्य की याद दिलाई जाती है।

प्रश्न: भगवान शिव के तीन मुख्य नेत्रों में से कौन सा नेत्र तीसरा है और उसका क्या अर्थ है?
उत्तर: भगवान शिव का तीसरा नेत्र उनके माथे पर होता है, जो अज्ञानता को नष्ट करने और ज्ञान की प्राप्ति का प्रतीक है।

प्रश्न: भगवान शिव भस्म किसे कहते हैं?
उत्तर: भस्म वह राख होती है जो हवन या यज्ञ के दौरान जलने के बाद बचती है और इसे शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं।

प्रश्न: भगवान शिव को किस प्रकार की भस्म प्रिय है?
उत्तर: विभूति, जो कि विशेष रूप से पवित्र मानी जाती है, शिव को अत्यधिक प्रिय है।

प्रश्न: भगवान शिव को ‘भूतनाथ’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: भूतों के स्वामी होने के कारण और उनकी शक्तियों को नियंत्रित करने के कारण उन्हें ‘भूतनाथ’ कहा जाता है।

प्रश्न: भगवान शिव ने भस्म को किस प्रकार प्राप्त किया?
उत्तर: पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था, और उसी भस्म को उन्होंने अपने शरीर पर धारण किया।

प्रश्न: शिवलिंग पर भस्म क्यों चढ़ाई जाती है?
उत्तर: भस्म चढ़ाने से शिवलिंग की पवित्रता और शक्ति को बढ़ाया जाता है, और यह भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायता करता है।

प्रश्न: भस्म का संबंध भगवान शिव के किस गुण से है?
उत्तर: भस्म भगवान शिव के संहारक और विनाशक गुण से संबंधित है।

प्रश्न: भगवान शिव की किस गाथा में भस्म का उल्लेख मिलता है?
उत्तर: शिव पुराण और लिंग पुराण में भस्म का विशेष उल्लेख मिलता है।

प्रश्न: भस्म को धारण करने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर: भस्म को धारण करने की प्रक्रिया को ‘भस्माराधन’ कहते हैं।

प्रश्न: भस्म धारण करने के लिए क्या विधि अपनाई जाती है?
उत्तर: भस्म को शरीर पर त्रिपुंड रूप में लगाया जाता है, जो तीन होरिजोंटल लाइनों का एक सेट होता है।

प्रश्न: भस्म के धारण से क्या लाभ होता है?
उत्तर: भस्म धारण करने से व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में मदद मिलती है।

प्रश्न: भगवान शिव के अन्य किसी प्रसिद्ध रूप में भस्म का महत्व क्या है?
उत्तर: नटराज रूप में भी शिव भस्म धारण किए हुए हैं, जो नृत्य के दौरान सृष्टि के नाश और पुनर्जन्म का प्रतीक है।

प्रश्न: भस्म का मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या होता है?
उत्तर: भस्म का मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह है कि यह भक्तों में जीवन के अंतिम सत्य और संसार की नश्वरता के प्रति जागरूकता बढ़ाता है।

 

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