अंगद के पैर को क्यों नहीं हिला सके लंका के योद्धा? इसके पीछे की कथा रामायण से जुड़ी हुई है। जब भगवान राम ने माता सीता को मुक्त कराने के लिए लंका की ओर कूच किया, तब उनके साथ अनेक वीर योद्धा थे, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय थे अंगद। अंगद, वानर राज बाली और अप्सरा तारा के पुत्र, उनकी सेना के महत्वपूर्ण स्तंभ थे। इस वीर तिकड़ी में हनुमान, जामवंत और अंगद शामिल थे, जिन्होंने “प्राण विद्या” में महारत हासिल की थी। प्राण विद्या, जो जीवनी शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जाओं को संचालित करने की कला है, ने इन योद्धाओं को असाधारण क्षमताएं प्रदान कीं। इस विद्या के बल पर अंगद ने लंका में अपनी बहादुरी और दृढ़ता के झंडे गाड़े, जिससे न केवल उनकी अपनी प्रतिष्ठा मजबूत हुई, बल्कि उन्होंने भगवान राम के मिशन में भी अमूल्य योगदान दिया। आइये सबसे पहले प्राण विद्या को समझते हैं।
एक समय की बात है जब अंगद ने प्राण विद्या के माध्यम से अपने शरीर को विशाल और बलिष्ठ बना लिया था। इस अद्भुत योगिक क्रिया के बाद, अंगद ने भूमि पर अपना पैर इस दृढ़ता से जमा दिया कि कोई भी उनके पग को उस स्थान से हिला न सका। यहाँ तक कि रावण की सभा में मौजूद सभी बलशाली योद्धा भी अंगद के पैर को एक पल के लिए भी इधर-उधर नहीं कर पाए।
जब रावण खुद इस चुनौती को स्वीकारने आया, तो अंगद ने अपनी गरिमा और बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए कहा कि राजाओं को अपने चरणों से पैर उठवाना शोभा नहीं देता। अंगद ने अपने पैर को फिर से उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और रावण से कहा कि उनके चरणों को स्पर्श करने का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि रावण वास्तव में कल्याण चाहते हैं, तो उन्हें भगवान राम के चरणों का स्पर्श करना चाहिए। इस पर रावण ने कोई उत्तर न देते हुए वापस अपने स्थान पर बैठ गया।
प्राण विद्या
यदि आप सोचते हैं कि विज्ञान की मदद से सब कुछ समझा जा सकता है, तो शायद आपको अध्यात्म की गहराइयों में झांकने की जरूरत है। वह आयाम, जहाँ हमारा सूक्ष्म शरीर, जिसे ऊर्जा शरीर भी कहा जाता है, अपनी सक्रियता दर्शाता है, वह विज्ञान की पकड़ से परे है। हमारे शरीर में 112 ऊर्जा केंद्र होते हैं, जिनमें से सात मुख्य चक्र हैं। इन्हीं में सबसे प्राथमिक है मूलाधार चक्र, जो कि शरीर के पेरिनियम क्षेत्र में स्थित होता है।
मूलाधार चक्र को अक्सर हमारे शरीरिक और आध्यात्मिक अस्तित्व की नींव कहा जाता है। योग के माध्यम से जब हम इस चक्र को मजबूती प्रदान करते हैं, तो हमारी आत्म-स्थिरता और आंतरिक शक्ति असाधारण रूप से बढ़ जाती है। ऐसी अवस्था में आप भी ‘अंगद’ की तरह अटल बन सकते हैं, जिन्हें कोई भी उनकी स्थिति से विचलित नहीं कर सकता था।
अंगद का जीवन प्राकृतिक संतुलन और आध्यात्मिक विकास का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। वे नंगे पैर धरती पर चलते थे, प्रकृति की गोद में अपना जीवन व्यतीत करते थे, और उनका आहार पूरी तरह शाकाहारी था। यही नहीं, अंगद हठ योग के महारथी भी थे, जिनके सभी सात चक्र पूरी तरह खुले हुए थे और उनका मूलाधार चक्र असाधारण रूप से मजबूत था।
इस मजबूत मूलाधार के चलते, अंगद के पैर वटवृक्ष की तरह दृढ़ता से धरती से जुड़ जाते थे, जिससे उन्हें हिला पाना असंभव हो जाता था। इस घटना ने न केवल रावण के अहंकार को मिट्टी में मिला दिया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सच्ची शक्ति आध्यात्मिक जागरूकता और प्राकृतिक संगति में निहित है।
अंगद से संबंधित प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: अंगद किस राजा के पुत्र थे?
उत्तर: अंगद, वानर राज बाली के पुत्र थे।
प्रश्न: अंगद ने रावण की सभा में अपना पैर क्यों जमाया?
उत्तर: अंगद ने रावण की सभा में अपना पैर इसलिए जमाया ताकि रावण के योद्धाओं को यह चुनौती दी जा सके कि वे उसे हिला कर दिखाएं।
प्रश्न: अंगद का पैर किसने हिलाने की कोशिश की थी?
उत्तर: रावण के योद्धाओं ने अंगद का पैर हिलाने की कोशिश की थी।
प्रश्न: अंगद के पैर को हिला पाने में लंका के योद्धा क्यों विफल रहे?
उत्तर: लंका के योद्धा इसलिए विफल रहे क्योंकि अंगद का पैर उनके आध्यात्मिक शक्ति और दृढ़ संकल्प के कारण अटल था।
प्रश्न: अंगद ने रावण को क्या सुझाव दिया?
उत्तर: अंगद ने रावण को सुझाव दिया कि वह भगवान राम के चरणों को स्पर्श करें क्योंकि यही उनके कल्याण का मार्ग है।
प्रश्न: अंगद की इस क्रिया का क्या महत्व था?
उत्तर: अंगद की यह क्रिया रावण के अहंकार को चुनौती देने और उसे उसकी सीमाओं का बोध कराने के लिए महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न: अंगद ने अपने पैर को किस प्रकार जमाया था?
उत्तर: अंगद ने अपने पैर को योगिक शक्ति और आत्मविश्वास के साथ जमाया था, जिससे उसे हिलाना असंभव हो गया था।
प्रश्न: अंगद के पैर की घटना का रामायण में क्या महत्व है?
उत्तर: यह घटना रामायण में धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष को दर्शाती है और यह बताती है कि सत्य और धर्म की शक्ति हमेशा अधिक होती है।
प्रश्न: अंगद ने अपने पैर को कहाँ जमाया था?
उत्तर: अंगद ने अपने पैर को रावण की सभा में जमाया था।
प्रश्न: अंगद के पैर को हिला न पाने पर रावण की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर: रावण ने अंगद के पैर को हिला न पाने पर मौन स्वीकृति दी और बिना कुछ कहे वापस अपने स्थान पर बैठ गया।
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